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शिव अभिषेक का महत्व

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Share on facebook Share on twitter More Sharing Services   श्रावण माह को भगवान शिव की भक्ति का महीना कहा जाता है। हिन्दू धर्म के तीन देवों में भगवान शिव को संहारक देव के रूप में माना जाता है। भगवान भोलेनाथ अपने नाम के अनुरूप भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। श्रावण माह भगवान शिव के अभिषेक का बड़ा महत्व है। भगवान शिव ही ऐसे देवता हैं जो मात्र जल चढ़ाने से प्रसन्न हो जाते हैं। शिवपुराण के अनुसार अलग-अलग कामनाओं की सिद्धि के लिए भगवान शिव का अनेक द्रव्यों से अभिषेक किया जाता है। यजुर्वेदीय ऋचाओं के साथ भगवान का अभिषेक करने से भगवान आशुतोष शीघ्र प्रसन्न होते हैं। अभिषेक से मनुष्य की अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की कामना की सिद्धि होती है। शिवपुराण में सनकादि ऋषियों के पूछने पर स्वयं भगवान शिव ने अभिषेक का महत्व बताते हुए कहा है कि सभी प्रकार की आसक्तियों

कैसे करें श्रावण सोमवार व्रत? सभी कष्टों को दूर करते हैं श्रावण सोमवार

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शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत तीन तरह के होते हैं। सोमवार, सोलह सोमवार और सौम्य प्रदोष। सोमवार व्रत की विधि सभी व्रतों में समान होती है। इस व्रत को श्रावण माह में आरंभ करना शुभ माना जाता है। श्रावण सोमवार के व्रत में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है। श्रावण सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे पहर तक किया जाता है। शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। व्रत करने वाले को दिन में एक बार भोजन करना चाहिए। व्रतधार ी क्या करें :- * श्रावण सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें। * पूरे घर की सफाई कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। * गंगा जल या पवित्र जल पूरे घर में छिड़कें। * घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। * पूरी पूजन तैयारी के बाद निम्न मंत्र से संकल्प लें : - - ' मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये' इसके पश्चात निम्न मंत्र से ध्यान करें : - - ' ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्‌। पद्मासीनं समंतात्स्तुतमम

गुरु की कृपा पाने का दिन है गुरु पूर्णिमा

हिंदू धर्म में सदैव गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है क्योंकि गुरु ही अपने शिष्यों को नवजीवन प्रदान करता है उन्हें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु के महात्मय को समझने के लिए ही प्रतिवर्ष आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस बार गुरु पूर्णिमा का पर्व 3 जुलाई, मंगलवार को है। गुरु शब्द में ही गुरु का महिमा का वर्णन है। गु का अर्थ है अंधकार और रु का अर्थ है प्रकाश। इसलिए गुरु का अर्थ है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला यानी गुरु ही शिष्य को जीवन में सफलता के लिए उचित मार्गदर्शन करता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो व्यक्ति गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करता है उसका जीवन सफल हो जाता है। महर्षि वेदव्यास ने भविष्योत्तर पुराण में गुरु पूर्णिमा के बारे में लिखा है, उसके अनुसार - मम जन्मदिने सम्यक् पूजनीय: प्रयत्नत:। आषाढ़ शुक्ल पक्षेतु पूर्णिमायां गुरौ तथा।। पूजनीयो विशेषण वस्त्राभरणधेनुभि:। फलपुष्पादिना सम्यगरत्नकांचन भोजनै:।। दक्षिणाभि: सुपुष्टाभिर्मत्स्वरूप प्रपूजयेत। एवं कृते त्वया विप्र मत्स्वरूपस्य दर्शनम्।। अर्थात- आषाढ

पुराणों के अनुसार बड़ी है मंगल देवता की महिमा

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पुराणों में मंगल देवता की पूजा की बड़ी महिमा बतायी गयी है। यह प्रसन्न होकर मनुष्य की हर प्रकार की इच्छा पूर्ण करते हैं। भविष्यपुराण के अनुसार मंगल व्रत में ताम्रपत्र पर भौमयन्त्र लिखकर तथा मंगल की सुवर्णमयी प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर पूजा करने का विधान है। मंगल देवता के नामों का पाठ करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। जिस मंगलवार को स्वाति नक्षत्र मिले, उसमें भौमवार व्रत करने का विधान है। मंगल देवता के नामों का पाठ करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। अंगारक व्रत की विधि मत्स्य पुराण के 72वें अध्याय में लिखी गयी है। मंगल अशुभ ग्रह माने जाते हैं। यदि ये वक्रगति से न चलें तो एक एक राशि को तीन तीन पक्ष में भोगते हुए बारह राशियों को पार करते हैं। मंगल ग्रह की शांति के लिए शिव उपासना तथा प्रवाल रत्न धारण करने का विधान है। दान में तांबा, सोना, गेहूं, लाल वस्त्र, गुड़, लाल चंदन, लाल पुष्प, केशर, कस्तूरी, लाल बृषभ, मसूर की दाल तथा भूमि देना चाहिए। मंगलवार को व्रत करना चाहिए तथा हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। इनकी महादशा सात वर्षों तक रहती है। यह मेष तथा वृश्चिक राषि के स्वामी हैं। मंगल

अनिष्टकारी शनि को प्रसन्न करने का अचूक उपाय

1.शनिवार का व्रत रखें  2. कीकर की दातुन (दतवन)करें  3.43 दिन तक कौओ को रोटी डालें ,यह कार्य शनिवार से आरम्भ करें  4.काला कुत्ता पाले या काले कुत्ते को शनिवार के दिन मीठी रोटी डाले  5."सिद्ध शनि यंत्र"गले में धारण करें ,ढैय्या या साढ़ेसाती से बचने हेतु "सिद्ध यमाग्रज शनि"यंत्र धारण करें  6.शनिवार को सरसों तेल में अपनी छाया देखकर भिखारी को दान करें  7.8 किलो काले उड़द में सरसों तेल मिलाकर काले कपडे में बांधकर शनिवार की संध्या सूर्यास्त के बाद बहती दरिया में बहा दें  8.शनि चालीसा का पाठ करें  9.साडेसात रत्ती बजन का "नीलम"पंचधातु की मुद्रिका में शनिवार के दिन जड़वा कर,शनिवार को ही दाहिने हाथ में मध्यमिका ऊँगली में धारण करें,महिलाएं बाये हाथ में धारण करें  10.काले घोड़े की नाल या किश्ती के कील का बिना जोड़ वाला छल्ला शनिवार को बनवा कर शनिवार को ही धारण करें  11.शनिवार को शनि मंदिर में तेल व काले उडद चड़ाये

नव ग्रह और आप.......

नव ग्रह और आप...... ग्रहों  के कुप्रभावो से परेशान होकर मन में तरह-तरह के कुविचार आने लगते है जैसे-'इस दुःख भरे जीवन से मौत भली,मेरा भाग्य ही खराब है जो ग्रहों ने मुझे  परेशान कर रखा है  ऐसे जीने से तो अच्छा है भगवान मुझे उठा ही ले.....'इस तरह व्यर्थ बाते सोच-सोचकर मानसिक और शारीरिक रूप से कष्ट पाते हुए जीवन को हम  बोझ की तरह जीते है|यदि आपको ग्रहों से पूर्ण परिचय के साथ-साथ उनके अनिष्ट प्रभाव से बचने की रीति ज्ञात हो जाये, तो आप स्वयं को नव ग्रहों के अनिष्ट से बचा सकते है | नवग्रहों के अनिष्ट से बचने के लिए सबसे उत्तम उपाय 'नवग्रह उपासना'है अपनी जन्मपत्री से सबसे शुभ ग्रह को  जानकर उसकी उपासना करके अन्य ग्रहों को अपने वश में कर सकते है| कुंडली से ग्रहों के अरिष्ट या अनिष्ट का भान कर लेने पर जब तक उपाय के द्वारा उसे दूर न किया जाए तब तक ज्योतिष की उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहेगा ? किसी भी अनिष्ट से मुक्ति के लिए या किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए उपाय करना अतिआवश्यक है|उपाय का प्रयत्न(कर्म)से सम्बन्ध है और सफलता में पूर्ण  सहायक है|  प्रायः उपाय दो

अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक अक्षय तृतीया

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अक्षय तृतीया के अति पावन शुभ अवसर पर इस बार राजा सूर्य और मंत्री गुरु का दिव्य संयोग बन रहा है। ज्योतिषी के अनुसार 24 अप्रैल को अक्षय तृतीया के दिन 12 वर्ष बाद राजा-मंत्री यानी गुरु-सूर्य का सुंदर योग बन रहा है। इससे पहले 6 मई 2000 को ऐसा योग बना था। 2012 के बाद 2024 में यह योग बनेगा। इस दिन रोहिणी नक्षत्र पूरे दिन-रात को रहेगा। अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक अक्षय तृतीया को कहा जाता है। इस दिन सूर्य एवं चंद्रमा दोनों ही अपनी-अपनी उच्च राशि में रहेंगे और वह भी गुरु के साथ। सूर्य के साथ मेष राशि में गुरु भी रहेंगे। जो कभी क्षय नहीं होती उसे अक्षय कहते हैं। कहते हैं कि इस दिन जिनका परिणय-संस्कार होता है उनका सौभाग्य अखंड रहता है। इस दिन महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए भी विशेष अनुष्ठान होता है जिससे अक्षय पुण्य मिलता है। स्वयंसिद्ध मुहूर्त : इस दिन बिना पंचांग देखे कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। क्योंकि शास्त्रों के अनुसार इस दिन स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। इस बार की अक्षय तृतीया पर मंगलवार के दिन सूर्यदेवता अपनी उच्च राशि मेष में रहेंगे। और वही इस दिन