गुरु की कृपा पाने का दिन है गुरु पूर्णिमा
हिंदू
धर्म में सदैव गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है क्योंकि गुरु ही अपने
शिष्यों को नवजीवन प्रदान करता है उन्हें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के
प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु के महात्मय को समझने के लिए ही प्रतिवर्ष
आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस बार गुरु
पूर्णिमा का पर्व 3 जुलाई, मंगलवार को है।
गुरु शब्द में ही गुरु का महिमा का वर्णन है। गु का अर्थ है अंधकार और रु का अर्थ है प्रकाश। इसलिए गुरु का अर्थ है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला यानी गुरु ही शिष्य को जीवन में सफलता के लिए उचित मार्गदर्शन करता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो व्यक्ति गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करता है उसका जीवन सफल हो जाता है। महर्षि वेदव्यास ने भविष्योत्तर पुराण में गुरु पूर्णिमा के बारे में लिखा है, उसके अनुसार -
मम जन्मदिने सम्यक् पूजनीय: प्रयत्नत:। आषाढ़ शुक्ल पक्षेतु पूर्णिमायां गुरौ तथा।।
पूजनीयो विशेषण वस्त्राभरणधेनुभि:। फलपुष्पादिना सम्यगरत्नकांचन भोजनै:।।
दक्षिणाभि: सुपुष्टाभिर्मत्स्वरूप प्रपूजयेत। एवं कृते त्वया विप्र मत्स्वरूपस्य दर्शनम्।।
अर्थात- आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को मेरा जन्म दिवस है। इसे गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन पूरी श्रृद्धा के साथ गुरु को सुंदर वस्त्र, आभूषण, गाय, फल, पुष्प, रत्न, स्वर्ण मुद्रा आदि समर्पित कर उनका पूजन करना चाहिए। ऐसा करने से गुरुदेव में मेरे ही स्वरूप के दर्शन होते हैं।
गुरु शब्द में ही गुरु का महिमा का वर्णन है। गु का अर्थ है अंधकार और रु का अर्थ है प्रकाश। इसलिए गुरु का अर्थ है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला यानी गुरु ही शिष्य को जीवन में सफलता के लिए उचित मार्गदर्शन करता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो व्यक्ति गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करता है उसका जीवन सफल हो जाता है। महर्षि वेदव्यास ने भविष्योत्तर पुराण में गुरु पूर्णिमा के बारे में लिखा है, उसके अनुसार -
मम जन्मदिने सम्यक् पूजनीय: प्रयत्नत:। आषाढ़ शुक्ल पक्षेतु पूर्णिमायां गुरौ तथा।।
पूजनीयो विशेषण वस्त्राभरणधेनुभि:। फलपुष्पादिना सम्यगरत्नकांचन भोजनै:।।
दक्षिणाभि: सुपुष्टाभिर्मत्स्वरूप प्रपूजयेत। एवं कृते त्वया विप्र मत्स्वरूपस्य दर्शनम्।।
अर्थात- आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को मेरा जन्म दिवस है। इसे गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन पूरी श्रृद्धा के साथ गुरु को सुंदर वस्त्र, आभूषण, गाय, फल, पुष्प, रत्न, स्वर्ण मुद्रा आदि समर्पित कर उनका पूजन करना चाहिए। ऐसा करने से गुरुदेव में मेरे ही स्वरूप के दर्शन होते हैं।
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