पुराणों के अनुसार बड़ी है मंगल देवता की महिमा

पुराणों में मंगल देवता की पूजा की बड़ी महिमा बतायी गयी है। यह प्रसन्न होकर मनुष्य की हर प्रकार की इच्छा पूर्ण करते हैं। भविष्यपुराण के अनुसार मंगल व्रत में ताम्रपत्र पर भौमयन्त्र लिखकर तथा मंगल की सुवर्णमयी प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर पूजा करने का विधान है। मंगल देवता के नामों का पाठ करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। जिस मंगलवार को स्वाति नक्षत्र मिले, उसमें भौमवार व्रत करने का विधान है। मंगल देवता के नामों का पाठ करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। अंगारक व्रत की विधि मत्स्य पुराण के 72वें अध्याय में लिखी गयी है। मंगल अशुभ ग्रह माने जाते हैं। यदि ये वक्रगति से न चलें तो एक एक राशि को तीन तीन पक्ष में भोगते हुए बारह राशियों को पार करते हैं।
मंगल ग्रह की शांति के लिए शिव उपासना तथा प्रवाल रत्न धारण करने का विधान है। दान में तांबा, सोना, गेहूं, लाल वस्त्र, गुड़, लाल चंदन, लाल पुष्प, केशर, कस्तूरी, लाल बृषभ, मसूर की दाल तथा भूमि देना चाहिए। मंगलवार को व्रत करना चाहिए तथा हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। इनकी महादशा सात वर्षों तक रहती है। यह मेष तथा वृश्चिक राषि के स्वामी हैं।
मंगल देवता की चार भुजाएं हैं। इनके शरीर के रोयें लाल हैं। इनके हाथों में क्रम से अभयमुद्रा, त्रिशूल, गदा और वरमुद्रा है। इन्होंने लाल मालाएं और लाल वस्त्र धारण कर रखे हैं। इनके सिर पर स्वर्ण मुकुट है।
मंगल देवता का रथ सुवर्ण निर्मित है। लाल रंग वाले घोड़े इस रथ में जुते रहते हैं। रथ पर अग्नि से उत्पन्न ध्वज लहराता रहता है। इस रथ पर बैठकर मंगल देवता कभी सीधी, कभी वक्रगति से विचरण करते हैं। कहीं-कहीं इनका वाहन मेष (भेड़ा) बताया गया है।
इनकी शांति के लिए वैदिक मंत्र- ‘ओम अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् अपा रेता सि जिन्वति।।
पौराणिक मंत्र- ‘धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्। कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम्।।
बीज मंत्र- ओम क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः तथा
सामान्य मंत्र- ओम अं अंगारकाय नमः है।
इनमें से किसी का श्रद्धानुसार नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। कुल जप संख्या 10000 तथा समय प्रातः आठ बजे है। विशेष परिस्थिति में विद्वान ब्राम्हण का सहयोग लेना चाहिए।

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