संयुक्ताक्षर राशी ज्ञान

नमो राघवाय,
आज एक पंडित जी एक समस्या लेकर के मेरे पास आये कि किसी जातक की राशी नाम संयुक्तअक्षर से हो तो राशी का निर्धारण कैसे करेंगे,मैंने उनकी शंका का समाधान किया और मै आप सभी जिज्ञासु व्यक्तियों के लिए साझा कर रहा हूँ-
ज्ञानचंद ,द्वारिका प्रसाद ,क्षेमचन्द,त्रिलोक बाबू ,ग्यारसी लाल, द्यालाराम की जन्म राशी व नक्षत्र चरण शस्त्रीय दृष्टि
से क्या मान्य होगा ? और यदि हस्त नक्षत्र के तृतीयचरण (ण) पर किसी बच्चे का जन्म हो तो उसका क्या नाम रखा जाये ? आज विभिन्न पंचांगों में राशी नाम अक्षर से अनेक नाम की सारणी उपलब्ध है लेकिन संयुक्त अक्षर से नाम रखने में अधिकांशतः संशय होता है | इस सन्दर्भ में शंका समाधान हेतु आज का लेख प्रस्तुत है -
आर्द्रा का तृतीयचरणाक्षर (ड) हस्त का तृतीयचरणाक्षर (ण) और उ.भा. के चतुर्थचरणाक्षर (ञ) पर किसी का नाम हो या ये अक्षर किस के नाम अदिमें पाए गए हो ऐसा आज तक नहीं सुना अतः शतपदचक्रानुसार ड,ण ,ञ ईन तीनो वर्णों में से कोई वर्ण जातक के जन्म नक्षत्र चरण आ पड़े तो उस परिस्तिथि में क्रमशः घ ,थ ,झपर नाम रखना चाहिए यथा -
                             नामादाै नव लोक्यन्ते वर्णास्तु ड,ञ,णाः क्वचित्|
                             तदेतेषु  क्रमान्नाम धर्तव्यं घ, झ, ठाक्षरैः ||
नाम का प्रथम अक्षर जिस नक्षत्र के चरण में हो वही उसका नक्षत्र और राशी जाननी चाहिए यथा चंद्रप्रभा की राशी मीन होगी -
                             यन्नामाद्याक्षरं यस्य नक्षत्रस्य पदे भवेत् |
                             तथेव तस्य नक्षत्रं विज्ञेयं गणकोत्त्मैः ||
यदि नाम के अक्षर में संयुक्ताक्षर हो तो उसमे प्रथम वर्ण का ही ग्रहण करना चाहिए यथा -
                             यदि नामिन् भवेद्वर्णः संयुक्ताक्षर लक्षणः |
                             ग्राह्यस्तददिमो वर्ण इत्युक्तं ब्रह्मयामले ||
जैसे - श्रीपति नाम के अदि में संयुक्त वर्ण 'श्र' के प्रथमवर्ण 'श' कार है,वह शतभिषा नक्षत्र के द्वितीय चरण में है सलिए श्रीपति अदिनामो का जन्मनक्षत्र शतभिषा का मान्य होगा शतपद चक्र में ॠकार नहीं कहा गया है , इसलिए ॠकारके स्थान पर रेफ ग्रहण करना चाहिए यथा ॠषिकुमार का जन्म नक्षत्र चित्रानक्षत्र तीसरा चरण तुला राशी होगी प्रमाण वाक्य-
                             अनुक्त्त्वाद्वकारस्य रेफो ग्राह्यो विचक्षणैः |
                             ॠद्धिनाथस्य नक्षत्रं यथा चित्रारव्यमेव हि || 


दीर्घ और ह्रस्व स्वर भेद 
 शतपदचक्र ज्योतिषीय मान्यतानुसार अकार और आकार तथा इकार और ईकार ,उकार और ऊकार तथा एकार और ऐकार एवं ओकार और औकार परस्पर तुल्य समझे जाते है इसी प्रकार ब और व एवं स और श ये दो दो अक्षर सामान माने गए है | जैसे अमरनाथ और आनंदस्वरुप दोनों का ही एक ही नक्षत्र कृतिका नक्षत्र और प्रथम चरण हुआ |हस्त के द्वितीय चरण में ष के स्थान पर पुष्पेन्द्र ,पुनीत अदि नाम रखे  इससे राशी और नक्षत्र पृथक नहीं हो जायेगा |अत: ष अक्षर के स्थान पर पुष्पेन्द्र,पुनीत,पूरण इत्यादि नाम रखने से राशी नक्षत्र वाही रहेगा और  न ही मेलापक गुणों में अंतर आएगा 
शास्त्र वाक्यः
                     अ आ ,इ ई,उ ऊ ,ए ऐ ,ओ औ ,द्वौ मिथः सामौ |
                                ब वौ ,श,सौ,तथैवात्र ज्ञेयो दैवविदा सदा ||
 जिस नाम के आदि में संयुक्त अक्षर हो उसका आदि वर्ण ग्रहण करके ही राशी विचार करना चाहिए जैसे: ज्ञानचंद नाम के आदि 'ज्ञा' शब्द की उत्त्पत्ति पाणिनि व्याकरण भाषासूत्र के अनुसार (ज ञ क्ष:)ज+ञ से यह बना है,इसलिए ज्ञान का नक्षत्र उत्तर षाढा तृतीय चरण मकर राशी होती है |
इसी प्रकार क्ष (क+ष संयोग क्ष:) होने से क्षेमचंद की राशी मिथुन मृगशिरा का तृतीय चरण होगा|त्रिलोकचंद की राशी तुला व नक्षत्र विशाखा होगा| द्वारिका (द् व् इ का) दकार ही प्रधान है अत: राशी कुम्भ व् नक्षत्र पूर्वाफाल्गुनी होगा|द्रोपदी,प्रियाकांत,प्रेमचंद,क्षेत्रपाल आदि में व्यवह्रित मध्य अक्षर को छोड़ कर स्वर सहित आद्याक्षर से ही नक्षत्र माननीय होगा |इनमें  क्रमशः द,पी,प,क की प्रधानता है|द्रुपदकुमार का उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र प्रथम चरण और मीन राशी है|
नोट:अ,व्,क,ह,डा चक्र में कुछ और भी अक्षर ऐसे है जिस पर नाम नहीं रखा जा सकता |
जैसे थ पर लड़की का नाम क्या रखे ? इस परिस्थिति में ज्योतिषी स्वतंत्र चिंतन कर नाम आगे पीछे के अक्षर पर रहे जा सकते है लेकिन ध्यान रहे राशी पृथक न हो जाये |

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