ज्योतिष और शिक्षा




शिक्षा में महत्वाकांक्षा-
                   जन्मकुंडली का नवम भाव धर्म त्रिकोण स्थान है ,जिसके स्वामी देव गुरु ब्रहस्पति है यह भाव शिक्षा में महत्वाकांक्षा व उच्च शिक्षा तथा उच्च शिक्षा किस स्तर की होगी इसको दर्शाते हैं यदि इसका सम्बन्ध पंचम भाव से हो जाये तो अच्छी शिक्षा तय करते है


शिक्षा का स्तर-
               जन्मकुंडली का पंचम भाव बुद्धि,ज्ञान,कल्पना,अतिन्द्रिय ज्ञान,रचनात्मक कार्य,याददाश्त व पूर्व जन्म के संचित कर्म को दर्शाता है यह शिक्षा के संकाय का स्तर तय करता है

शिक्षा किस प्रकार की होगी-
                       जन्मकुंडली का चतुर्थ भाव मन का भाव है यह इस बात का निर्धारण करता है कि आपकी मानसिक योग्यता किस प्रकार  की शिक्षा में होगी जब वे चतुर्थ भाव का स्वामी छठे,आठवें या बारहवे भाव में गया हो या नीच राशि,अस्त राशि,शत्रु राशि में बैठा हो व कारक गृह (चंद्रमा) पीड़ित हो तो शिक्षा में मन नहीं लगता है


शिक्षा का उपयोग-
               जन्मकुंडली का द्वितीय भाव वाणी, धन संचय ,व्यक्ति की मानसिक स्थिति को व्यक्त करता है तथा यह दर्शाता है कि शिक्षा आपने ग्रहण की है वह आपके लिए उपयोगी है या नहीं है यदि इस भाव पर पाप ग्रह का प्रभाव हो तो व्यक्ति शिक्षा का उपयोग नहीं करता है
जातक को बचपन से किस विषय की पढाई करवानी चाहिए इस हेतु हम मूलतः निम्न चार पाठ्यक्रम (विषय) ले सकते है- गणित,जीव विज्ञान,कला और वाणिज्य-
गणित-
   गणित के कारक ग्रह बुध का सम्बन्ध यदि जातक के लग्न,लग्नेश या लग्न नक्षत्र से होता है तो वह गणित में सफल होता है यदि लग्न,लग्नेश या बुध बली एवं शुभ दृष्ट हो,तो उसके गणित में पारंगत होने की सम्भावना बढ़ जाती है शनि एवं मंगल किसी भी प्रकार से सम्बन्ध बनाए तो जातक मशीनरी कार्य में दक्ष होता है इसके अतिरिक्त मंगल और राहु की युति ,दशमस्थ बुध एवं सूर्य पर बली मंगली की दृष्टि,बली शनि एवं राहु का सम्बन्ध,चन्द्र व बुध का सम्बन्ध दशमस्थ राहु एवं षष्ठस्थ यूरेनस आदि योग तकनीकी शिक्षा के कारक होते है
जीव विज्ञान-
           सूर्य का जल राशिस्थ होना,छठें एवं दशम भाव\भावेश के बीच सम्बन्ध सूर्य एवं मंगल का सम्बन्ध आदि चिकित्सा क्षेत्र में पढाई के कारक होते है लग्न\लग्नेश एवं दशम\दशमेश का सम्बन्ध अश्विनी,मघा या मूल नक्षत्र से हो तो चिकित्सा क्षेत्र में सफलता मिलती है

कला-
   पंचम\पंचमेश एवं कारक गुरु का पीड़ित होना कला के क्षेत्र में पढाई का कारक होता है इन पर शुभ ग्रहो की दृष्टि पढाई पूरी करवाने में सक्षम होती है पापी ग्रहो की  दृष्टि-युति सम्बन्ध कला के क्षेत्र में पढाई में अवरोध उत्पन्न करता है लग्न व दशम का शनि व राहु से सम्बन्ध राजनीतिक क्षेत्र में सफलता दिलवाता है दसवें भाव का सम्बन्ध सूर्य, मंगल,गुरु या शुक्र से हो तो जातक जज बनता है      
 वाणिज्य-
       लग्न\लग्नेश का सम्बन्ध बुध के साथ-साथ गुरु से भी हो तो जातक वाणिज्य की पढाई सफलतापूर्वक करता है 

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